अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिवस के अवसर पर उनकी जन्मकुंडली का संक्षिप्त विश्लेषण
भारत के सबसे अधिक लोकप्रिय नेता, भारत रत्न, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी के व्यक्तित्व, कृतित्व और वाणी में इतना आकर्षण था कि लोग स्वत: ही उनकी ओर आकर्षित होते थे। उनसे देशवासियों का मोह कितना था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे अनंत यात्रा के पथिक हुए, तो करोड़ों दिल रोए और आंखों से आंसू न थमे | इस प्रकार किसी जन नेता के लिए भावनात्मक रूप से जुड़ना, निश्चित रूप से यह सिद्ध करता है कि पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जितने प्रसिद्ध और जनता के प्रिय राजनेता थे, उतने ही उम्दा साहित्यकार और बेहतरीन कवि भी थे। राजनीति के फलक पर एक ऐसे चमकतेे सितारे थे जो अपनी साफगोई के लिए भी जाने जाते थे ओर यही वजह थी की उन्हें पक्ष एवं विपक्ष का समान स्नेह प्राप्त हुआ |
ऐसा चरित्र जब आंखों के सामने से होकर गुजरता है, तो यह सवाल मन में आना स्वभाविक है कि यह व्यक्ति उस परमपिता परमेश्वर से अपने भाग्य में ऐसा क्या लिखवा कर लाया था जिससे उसने अपने जीवन काल में अनन्त ऊंचाईयों को छुआ और यह जिज्ञासा हमें कहीं ना कहीं उस व्यक्ति के जन्म समय की ग्रह स्थिति को जानने की ओर ले जाती है | क्योंकि मनुष्य का भाग्य उसके जन्म समय की ग्रह स्थिति पर ही निर्धारित होता है | सूक्ष्मता से यदि माननीय अटल जी की जन्मकुंडली का विश्लेषण किया जाए तो उनके जीवन से जुड़े कार्यों एवं उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों को कुछ हद तक हम जान सकते हैं कि आखिर क्यों राजनीति के शिखर पर इतने लोकप्रिय थे अटल बिहारी वाजपेयी जी |
भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को दोपहर दो बजे ग्वालियर मध्यप्रदेश में हुआ था । उनकी कुंडली मेष लगन की थी और लगनेश मंगल का स्थान बारहवे भाव में था। लगनेश से ग्यारहवे केतु थे और लगनेश से दसवें सूर्य गुरु वक्री बुध थे, लगनेश से नवे भाव में शुक्र चन्द्र थे, लगनेश से अष्टम में शनि थे | चूंकि लग्न का स्वामी बारहवें स्थान पर है, तो यह लग्न का व्यय करने वाला होना चाहिए था, लेकिन यहां बड़ी भ्रांति दूर होती है कि लग्न पर यह नियम लागू नहीं होता, और अगर होता है तो वह सकारात्मक हो सकता है। क्योंकि यहां लग्न का व्यय तो हुआ, परन्तु उस प्रकार से जैसे कोई हीरा तराशा जाता है।
अटल बिहार वाजपेयी की कुंडली में सप्तम भाव (केंद्र) में शनि का उच्च होकर विराजित है अत: यह शष नामक महापुरुष योग बनाता है। चूंकि शनि राजनीति का कारक है, गांभीर्य का कारक है, स्थायित्व का कारक है, अत: इस योग के कारण ही अटल जी ने राजनीति के क्षेत्र में अपनी अलग छाप छोड़ते हुए प्रसिद्धि पाई। शनि के प्रभाव से उनके स्वभाव में गंभीरता, न्यायप्रियता का समावेश दिखाई देता था। और इसी के प्रभाव से उन्होंने संघर्ष से जो पहचान बनाई और प्रसिद्धि पायी, वह अंतकाल तक चिरस्थायी रही और अब भी है।
अटल जी की जन्मकुंडली में अष्टम भाव के स्वामी का बारहवें में बैठना और द्वादश व अष्टम का जुड़ना विपरीत राजयोग बनाता है, जो जातक को विपरीत परिस्थितियों में साहसी व कठोर परिश्रमी बनाता साथ ही संघर्ष करने की क्षमता प्रदान करता है | जातक प्रतिकूल परिस्थितियों से सामना करने में सक्षम होता है । यह संयोग मित्रता में वृद्धि करता है और शत्रुओं को पक्ष में करता है। यही कारण रहा कि साहित्यिक, पत्रकारिता एवं राजनीति के क्षेत्र में अापके घोर शत्रुओं ने भी आपके साथ सदैव मित्रवत् व्यवहार किया |
अटल जी की वाणी का भारतीय जनमानस पर ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में गहरा प्रभाव रहा है | साहित्यकार, पत्रकार, राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ अटल बिहारी वाजपेयी जी राष्ट्रीय स्तर पर मंचजयी कवि भी रहे हैं | वाणी की मधुरता, लोकप्रियता एवं प्रवाहमानता के पीछे अटल जी की जन्म पत्रिका के द्वितिय भाव को जानना बेहद जरुरी है | जन्म कुण्डली का द्वितीय भाव जो कि धन एवं वाणी का होता है | द्वितीय भाव में वृषभ राशि है ओर इसका स्वामी अष्टम में स्थित होकर अपने ही घर को देख रहा है। यह शुभ दृष्टि संयोग जातक को आध्यात्मिक बनाने के साथ ही वाणी को रसयुक्त एवं आकर्षक बनाती है | सहज, सरल एवं मधुर वाणी जातक को अच्छे वक्ता की श्रेणी में ला खड़ा करती है। द्वितीय भाव पर भावेश के साथ साथ चंद्रमा एवं सूर्य की दृष्टि जातक को तेजस्विता के साथ बुद्धि एवं ज्ञान में वृद्धि करती है | द्वितीय भाव पर पड़ने वाली दृष्टि के कारण ही अटल जी की रचनाओं में ओजस्विता एवं वाणी में आकर्षण के दर्शन होते हैं | द्वितीय भाव के प्रभाव को अटल जी की कविताओं में एवं भाषणों में देखा जा सकता है |
पत्रिका के तृतीय भाव पर, जो कि लेखन का होता है | बुध जो कि वाणी, बुद्धि और लेखन का ही कारक होता है | इनकी स्वग्रही दृष्टि पड़ने के कारण ही वे एक बेहतरीन लेखक, साहित्यकार और कवि और पत्रकार हुए। साथ ही मंगल की दृष्टि ने उन्हें साहस दिया।
कुंडली के चतुर्थ भाव का स्वामी अष्टम में होने के कारण, वे कभी पैतृक घर में नहीं रहे। पैतृक घर-परिवार और माता का सुख बहुत अच्छी तरह उन्हें नहीं मिल पाया। शनि की दृष्टि पड़ने से इस सुख में और भी कमी रही। पंचम भाव और दशम भाव के स्वामी मंगल के भाग्य स्थान में बैठने के चलते ही अटल जी को प्रधानमंत्री पद का सुख प्राप्त हुआ ।
अटल जी के अविवाहित होने के कुछ कारणों में से प्रथम कारण है, शुक्र का अष्टम भाव (व्यय भाव) में स्थित होना है, जिसे पुरुष की कुंडली में विवाह का कारक माना जाता है। दूसरा कारण बारहवें भाव में मंगल का होना, जो पत्रिका को मांगलिक बनाता है और विवाह संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है।तीसरा और बड़ा कारण है सप्तम भाव में शनि का उच्च होकर बैठना। दरअसल शनि पृथकतावादी ग्रह है और इसके प्रभाव में अधिकता जातक को वैराग्य की ओर ले जाती है। यह स्थिति दांपत्य जीवन के लिए नकारात्मक हो सकती है।
भाग्य भाव में गुरु का स्वराशि में स्थित होना, भाग्य में वृद्धि करता है और इसमें सूर्य की उपस्थिति यश प्रदान करने के साथ ही भाग्य को चमकाने की बात करती है। इसके अलावा भाग्य स्थान पर बुधादित्य योग का होना भी बेहद शुभ है।
बृहस्पति में मंगल की दशा में ही वे प्रधानमंत्री बने और शनि में केतु के आने के उपरांत उनकी सेहत खराब हुई और मार्केश सूर्य की दशा में अटल जी को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा । शनि में सूर्य, सूर्य में राहु के कारण उनको मृत्यु का सामना करना पड़ा । अटल बिहारी वाजपेयी एम्स में लंबे समय से भर्ती थे। 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली।
पंडित राजेश रावल "सुशील"
संपादक- "संस्कृति संवाद" पत्रिका
संस्कृति संवाद परिवार की ओर से सभी कवि साहित्यकार एवं पाठक वर्ग को भारत रत्न पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं बहुत बहुत बधाई