लोकभाषा साहित्य एवं संस्कृति को नष्ट करने का निन्दनीय प्रयास |
श्रद्धेय पंडित सूर्य नारायण जी व्यास के द्वारा स्थापित अखिल भारतीय लोक भाषा कवि सम्मेलन की परंपरा को इस बार स्थगित करना निश्चित रूप से नगर निगम की संकीर्ण मानसिकता को प्रदर्शित करता है |
लोकाचंल के विभिन्न आयामों को संजोकर रखना एवं लोककला, संस्कृति, साहित्य एवं लोकभाषाओं को संरक्षण, संवर्धन एवं विकास की राह पर निरंतर प्रवाहमान बनाये रखना ही इस प्रकार के पारंपरिक आयोजनों का मुख्य उद्देश्य है |
अपने मुख्य उद्देश्य से भटक कर निश्चित रूप उज्जैन नगर निगम मेला समिति ने घोर निन्दनीय निर्णय लिया है | मैं चाहूंगा इस विषय पर नगर निगम की महापौर, नगर निगम अध्यक्ष एवं मेला समिति पुनर्विचार करें और इस परंपरा को जीवंत बनाए रखने में अपना सहयोग प्रदान करें |
लोक भाषा एवं लोक बोलियों से जुड़े लोक साहित्यकार एवं कवियों के लिए पूरे मध्यप्रदेश में यह एकमात्र मंच है , जिस पर लोक साहित्यकार अपनी प्रस्तुति के माध्यम से अपने लेखन को अभिव्यक्त करते हैं | यदि इस एकमात्र मंच को भी सरकार ने बंद करने का निर्णय लिया है तो यह बहुत ही गलत है |
लोक संस्कृति, लोककला, लोकसाहित्य को जीवंत बनाये रखना है तो लोक भाषाओं को भी जीवित रखना अनिवार्य है | इन मृतप्राय हो रही लोक भाषाओं को संरक्षण संवर्धन एवं विकास की ओर अग्रसर करने के लिए शासन प्रशासन की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है | यदि इस प्रकार इन मंचों को और वर्षों से चली आ रही इन परंपराओं को सतत प्रवाहमान बनाए रखने की बजाएं इन्हें बंद कर दिया जाएगा तो आने वाले समय में लोक भाषाएं ही नहीं वरन संस्कृति, कला एवं साहित्य को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा |
मैं चाहूंगा इस घोर निंदनीय कार्य के लिए सिर्फ लोकभाषा साहित्य से जुड़े कवि साहित्यकार ही नहीं वरन् अन्य भाषाओं से जुड़े साहित्यकार भी इस निर्णय का विरोध करें ताकि यह परंपरा बनी रहे |
मैं आदरणीय डॉक्टर देवेंद्र जोशी जी का आभारी हूं कि उन्होंने सर्वप्रथम अपने अखबार में इस बात को प्रमुखता से उठाया एवं इसे अन्य लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया | उनका यह प्रयास सराहनीय है |
वैसे उज्जैन में कई अखबार हैं लेकिन किसी भी अखबार ने इस दुखद समाचार को प्रकाशित करने की जहमत नहीं उठाई |
पूर्व में आदरणीय रामेश्वर अंखड जी (तत्तकालिन महापौर) ने भी इस प्रकार का निर्णय लिया था किन्तु उस समय उज्जैन के सभी वरिष्ठ कवि साहित्यकारों एवं शहर के कई अखबारों ने जिसमें दैनिक भास्कर , नई दुनिया, दैनिक अग्निपथ, अक्षर विश्व , दैनिक अवंतिका आदि अखबारों ने लोकभाषा के इस पावन, पवित्र मंच "अखिल भारतीय लोकभाषा कवि सम्मेलन" के पक्ष में एक श्वर में आक्रोश व्यक्त किया ओर इस आक्रोश के पीछे की निःस्वार्थ भावना को समझते हुऐ मेला समिति ने इस लोकभाषा कवि सम्मेलन को जारी रखने का निर्णय लिया | एवं लोकभाषा मंच को गरिमा प्रदान की |
लेकिन इस बार इन अखबारों ने भी इस विषय पर कोई चर्चा- परिचर्चा नहीं कि मैं अनुरोध करूंगा कि सभी कवि साहित्यकार एवं पत्रकार इस परंपरा को बंद करने के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाएं एवं इसे पुनर्जीवित करने में अपना सहयोग प्रदान करें | धन्यवाद |
डॉ राजेश रावल "सुशील"
संपादक- "संस्कृति संवाद"
(लोक भाषा की अखिल भारतीय त्रैमासिक पत्रिका)