प्रकाशन का प्रथम सोपान : आगाज उज्जवल भविष्य का


प्रकाशन का प्रथम सोपान : आगाज उज्जवल भविष्य का



भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ |


याभ्यां बिना न पश्यन्ति, जना स्वान्तस्थमीश्वरम् ||


संत कवि परमपूज्य तुलसीदास जी ने साहित्य की अमूल्य निधि श्रीरामचरितमानस के शुभारंभ में ही अर्थात प्रथम श्लोक में ही श्रद्धा विश्वास रूपी उमा महेश्वर को प्रणाम निवेदित करते हुए इस बात की सार्थकता को सिद्ध किया है कि सृष्टि चाहे सांसारिक हो या कलात्मक हो अथवा काव्यात्मक बिना शिव पार्वती के संभव नहीं है भवानी शंकर रूपी अर्धांगी स्वरूप के बिना किसी विषय की सृष्टि तो क्या उस विषय की कल्पना करना भी संभव नहीं है | भवानी-शंकरौ अर्थात प्रकृति और पुरुष, धरा और आकाश या श्रद्धा और विश्वास के रूप में अर्धांगी शिवमय स्वरुप को इस सृष्टि का आधार माना गया है | समस्त सृष्टि, कला एवं साहित्य इसी स्वरूप में समाहित हैं | 



प्रस्तुत कृति आगाज उज्जवल भविष्य का के कवि एवं युवा कलमकार विशाल भम्भानी जी भी अपनी रचना धर्मिता में पूर्ण आस्था रखते हुए यह आगाज करते हैं कि उनकी रचनाएं श्रद्धा एवं विश्वास का केंद्र बन स्वयं के साथ-साथ समाज को भी शुभ दिशा व दशा प्रदान करेगी | 
अधिकांश कवि, लेखकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में जमीन आसमान का अंतर दिखाई देता है, उनकी रचना धर्मिता से उनका व्यक्तित्व मेल नहीं खाता | कहने का तात्पर्य यदि स्वयं की रचना स्वयं पर प्रभाव नहीं डाल पा रही है तो वह समाज पर प्रभाव डाल पाएगी इसमें संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है किंतु प्रस्तुत कृति के रचनाकार किसी अन्य के प्रति चिंतित नहीं है बल्कि वह स्वयं के प्रति चिंतित हैं हम "सुधरेंगे युग सुधरेगा" के ध्येय वाक्य को ध्यान में रखते हुए कवि, दुनिया को सुधारने की बजाय स्वयं को सुधारने में विश्वास रखता है | समाज सुधार का मूल मंत्र भी यकीनन यही है | 


जिस कविता के शीर्षक को कवि ने कृति शीर्षक के रूप में ग्रहण किया है उस कविता की भाव भूमि "तमसो मा ज्योतिर्गमय" अर्थात "हे ईश्वर मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो" के ध्येय वाक्य से भी एक कदम आगे निकल कर स्वयं उजाला बनने की बात को स्वीकारा है, पंक्तियां इस प्रकार हैं-
मेरी कलम की कला से 
रची राह पर 
मैं निकल पड़ा हूं ,
निभाने अपना कर्तव्य |
उज्जवल भविष्य का, 
मेरे उज्जवल भविष्य का |
अब कोई संशय नहीं,
मैं स्वयं उजाला बन सकूंगा |


प्रकाश की ओर गति करना और स्वयं प्रकाश होना दो अलग-अलग बात है | स्वयं द्वारा किसी लक्ष्य को प्राप्त करना जितनी बड़ी बात है, उससे भी बड़ी बात है औरों के लिए स्वयं लक्ष्य हो जाना | 
भम्भानी जी ने प्रस्तुत कृति में स्वार्थ, पुरुषार्थ और परमार्थ तीनों पर पर्याप्त लिखा है | भारतीय वांग्मय में व्याप्त सूत्रों की तरह आपकी इन रचनाओं में भी सर्वत्र धर्म, अध्यात्म, दर्शन एवं जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों तथा अनुभूतियों को सरल एवं सहज रूप में अभिव्यक्त किया गया है | बहुत ही कम शब्दों में एवं बिना किसी उपमा, उपमेय के आपने अपनी बात एवं अपने अनुभव प्रसंगों को अभिव्यक्त किया है | इन काव्यमयी छोटी-छोटी रचनाओं में जीवन का यथार्थ झलकता है | कवि स्वयं इस बात को अपने लेखन में स्वीकार करता है -


मैं कोई बड़ा लेखक नहीं,
मैं तो हूं एक आम आदमी
जिसमें कुछ अच्छे गुण हैं
और कई अच्छे गुणों की कमी
अपने माता पिता श्रीमती अनुराधा एवं श्री गिरधारी लाल अंबानी जी के श्री चरणों में समर्पित इस प्रथम काव्य कृति रूपी पुष्प को अर्पित कर विशाल जी ने भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों परिचय दिया है | माता पिता के प्रति आपकी भावनात्मक अभिव्यक्ति कविता के रूप में इस कृति में प्रकाशित ममता मां की एवं पिता शीर्षक कविता अक्षरस: उतरी है |
"इसी प्रकार सीखने का कोई अंत नहीं है"
"देकर खुशियों को सही आकार" "बयान ए दिल" "तू आसमा है तो मैं जमी हूं या रब" "आत्म विश्वास के स्वर" "उड़ चले परिंदे" "जोश" "हल" "कर जतन" "कोशिश" "आगाज" "तू निखर" "जिंदगी के माने" "कहता है यह दिल" "जिंदगी का अफसाना" एवं "अनुभव का सागर" इत्यादि शीर्षक से कुल चोपन कविताएं इस संग्रह में प्रकाशित हुई है |


लगभग सभी कविताओं में जीवन के गहरे अनुभवों को सीधी सपाट भाषा शैली में कवि ने कागजी केनवास पर उकेरने का सार्थक प्रयास किया है | अधिकांश रचनाओं में कवि ने स्वयं के जीवन में आई कठिनाइयों से सबक लेते हुए स्वयं को ही सही दिशा में चलाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है | और यह सही भी है जब तक हम अपने अनुभवों से सबक लेकर आगे नहीं बढ़ते तब तक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते | दूसरों के अनुभव पर चलने वाला कभी अपनी राह नहीं बना पाता |
कुछ एक रचनाओं में कवि ने वर्तमान संदर्भों से जुड़ी राष्ट्रीय, सामाजिक एवं धर्म से सरोकार रखने वाली रचनाओं को भी इस कृति में स्थान दिया है | साथ ही कुछ रचनाएं सामाजिक विसंगतियों, विद्रूप्ताओं, कुरीतियों एवं असामाजिक कृत्यों पर केंद्रित है | इन रचनाओं में सामाजिक विसंगतियों के प्रति कवि का आक्रोश साफ झलकता है | इन रचनाओं में "ऊब सा गया हूं सुनते हुए"  "रंग लाया शहीदों का जतन"  "इंसान का घिनौना रूप" "बोझ ढोती हमारी धरा"  "सत्कर्म ही असल धर्म" जैसी बहुत छोटी-छोटी रचनाएं हमें  सोचने पर मजबूर करती है |


अक्षर विन्यास प्रकाशन से प्रकाशित चोपन पृष्ठीय काव्य संकलन में कुल चोपन कविताएं प्रकाशित है | खलील जिब्रान ने कहा है कि, "किसी शख्सियत के बारे में कुछ कहना कठिन कार्य है क्योंकि अगर उसकी तारीफ की जाती है तो वह दूसरों को नागवार गुजरती है और बुराई की जाए तो खुद शख्सियत को बुरा लगता है" फिर भी मैं अपने युवा कवि मित्र को आगाह करना चाहूंगा कि अभी बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है, यह कृति सिर्फ आगाज है लक्ष्य नहीं हैं | अपने युवा तेवर एवं सीधी सरल भाषा शैली में लिखी गई इन रचनाओं में भाव पक्ष ही प्रधान है कला पक्ष की दृष्टि से अभी विशाल भम्भानी जी की रचनाओं को तराशने की जरुरत है | मुझे विश्वास है कि विशाल भम्भानी जी की रचना धर्मिता इसी प्रकार साहित्यिक विकास की ओर अग्रसर होती रहे एवं अपने नाम के अनुरूप विराटता को प्राप्त करें | धन्यवाद | 


समीक्षक 


डॉ.  राजेश रावल " सुशील "


9926233477